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NBT News :-
शादी-पार्टी के गानों के कॉपीराइट के लिए आंटी पुलिस नहीं बुला सकती








वैसे दिल्ली के कई नामी होटल और बड़े ऑडिटोरियम भी अपने यहां पार्टीज ऑर्गनाइज करने देने के लिए इन संस्थाओं का लाइसेंस मांगते हैं। इवेंट ऑर्गनाइजर संजय मलिक बताते हैं कि यह जो डर गया, वो मर गया टाइप का मामला है। समिति वाले सिर्फ धमकाकर डराते हैं। इनका टार्गेट बड़े होटल वाले और ऑडिटोरियम वाले लोग होते हैं। पार्टी में ये लोग पीक टाइम पर आते हैं, लाइसेंस फीस नहीं ली यह हल्ला करते हैं और जो आदमी लाखों रुपए खर्च करके पार्टी कर रहा है, वो अपनी इज्जत बचाने के लिए फीस देकर निपटारा कर लेता है। इनके ऑफिस में जाकर आप लाइसेंस ले नहीं सकते, क्योंकि वहां कोई रसीद, कागज या फिर लाइसेंस मिलता नहीं। बल्कि ये लोग वैन्यू मैनेजर्स की मदद से सिर्फ पैसे वसूल करते हैं। 

टार्गेट पर रहे होटल वाले

आपकी पार्टी में कौन सा गाना बजेगा या कौन उसे गाएगा, यह तय करना आपका अधिकार है। इसके लिए अब किसी से लाइसेंस लेने की जरूरत नहीं

कि पुलिस ने कभी भी किसी आदमी को आईपीआरएस या पीपीएल जैसी सोसायटी से जारी होने वाला लाइसेंस लाने को मजबूर नहीं किया। हम हर पब्लिक इवेंट से पहले सिर्फ सेफ्टी के लिहाज से चेकिंग करते हैं और एक मामूली सी फीस लेकर लाइसेंस देते हैं। पुलिस का किसी संस्था से कोई वास्ता नहीं है। अगर सोसायटी वाले पुलिस का नाम इस्तेमाल कर रहे हैं, तो यह गलत है। - इंसपेक्टर ओम प्रकाश दलाल, इंचार्ज, लाइसेंसिंग 
डिपार्टमेंट, दिल्ली पुलिस
शिकायत आए, तो हम देखें इंडियन कॉपीराइट एक्ट, 1957 के तहत कोई भी आदमी अपना लिट्रेरी, ड्रामेटिक, म्यूजिकल या आर्टिस्टिक 
.वर्क ताउम्र के लिए संरक्षित कर सकता है। उसके एवज में वो उसकी रॉयल्टी भी खा सकता है। पर्सनल लेवल पर कोई भी कलाकार रॉयल्टी वसूल कर सकता है, लेकिन इस वक्त इंडियन परफॉर्मिंग राइट्स और फोनोग्राफिक परफॉर्मेंस के नाम पर रॉयल्टी बटोरने वाली कोई वैध कॉपीराइट सायटी नहीं है।

- कौशिक कोठारी, कॉपीराइट मामलों के जानकार वकील

अवैध वसूली हो रही है

प्रशांत चाहल

सी शादी, बर्थडे पार्टी, म्यूजिकल नाइट या फिर पब्लिक इवेंट में पुलिस आ जाए, तो अच्छा नहीं लगता। 
ज्यादातर लोग ऐसी नौबत से बचते हैं और कोशिश करते हैं कि पुलिस का सायरन उनकी पार्टी से दूर ही रहे। बहरहाल, इस बात से सभी वाकिफ हैं कि दिल्ली में पार्टी करने के लिए टाइम की कुछ पाबंदियां रखी गई हैं। शहर के रिहायशी इलाकों में आप देर रात तेज म्यूजिक नहीं बजा सकते। अगर आपने ऐसा किया, तो जिक
 बंद करवाने के लिए सायरन की आवाज बिना देरी के आ जाती है। बहरहाल, यह एक लीगल मामला है, जिसे दिल्लीवाले फॉलो कर रहे हैं। लेकिन दिल्ली में कुछ लोग गैरकानूनी तरीके से भी लोगों की पार्टियों में खलल डाल रहे हैं और उनकी रौनक उतार रहे हैं। ग्रेटर कैलाश में रहने वाले बिजनेसमैन जतिन पलतानी बताते हैं कि उनकी वेडिंग सेरेमनी के मौके पर कुछ लोग अचानक से आए और लाइसेंस फीस नहीं भरने का हवाला देकर म्यूजिक बंद करवाने लगे। उन लोगों ने फीस भरने के लिए पहले होस्ट से कहा, फिर म्यूजिक प्ले कर रहे डीजे को धमकाने लगे। आधे घंटे तक यह ड्रामा चला। बाद में 25 हजार रुपए फीस लेकर वो लोग वहां से गए। इस बारे में जतिन कहते हैं, 'मैंने वेन्यू की फीस भरी थी। म्यूजिक प्रोग्राम करने वालों को पेमेंट दी थी। पुलिस से लाइसेंस लिया था। लेकिन फिर पार्टी में बज रहे गानों का कॉपीराइट लाइसेंस भी लेना था, यह मुझे पार्टी के वक्त ही पता लगा। होटल के मैनेजर्स के कहने पर मुझे उन्हें पेमेंट करनी पड़ी।'

वैसे जतिन उस वक्त पर पुलिस की मदद ले लेते, तो शायद उन्हें इस लाइसेंस फीस से बचने का रास्ता मिल 
 जाता, क्योंकि जिन लोगों को उन्होंने फीस दी, उनकी कोई वैधता नहीं है। दरअसल, मुंबई से रजिस्टर हुई इंडियन परफॉर्मिंग राइट्स सोसायटी, बीते 18 सालों से देशभर में हो रहे म्यूजिकल आयोजनों से कॉपीराइट फीस लेती रही है और उन्हें परफॉर्म करने का लाइसेंस देती रही है। उसी की तरह एक है फोनोग्राफिक परफॉर्मेंस लिमिटेड, जो रिकॉर्डिड म्यूजिक यानी डीजे पर गाने प्ले करने वालों से फीस लेकर उन्हें लाइसेंस देती रही है। इन दोनों ही समितियों की मान्यता अब रद्द हो चुकी है। दिल्ली ऑर्गनाइजर्स एंड आर्टिस्ट्स सोसायटी के अध्यक्ष अमरजीत सिंह कोहली बताते हैं, 'इन समितियों का गठन इसलिए हुआ था, ताकि ये 15 परसेंट एडमिनिस्ट्रेटिव कॉस्ट काटकर, बाकी कॉपीराइट फीस का पैसा कलाकारों में बाट दें। लेकिन जावेद अख्तर साहब ने इनके खिलाफ आवाज उठाई कि उन्हें आज तक रॉयल्टी का एक पैसा नहीं मिला, जबकि समिति एक अरसे से हमारे हिस्से की रॉयल्टी बाकी कलाकारों से वसूल कर रही है। 27 मार्च, 1996 को यह सोसायटी रजिस्टर हुई थी। मुंबई से इसकी शुरुआत हुई। नौशाद साहब इसके पहले प्रेसिडेंट बने। फिर सबसे पहले रॉयल्टी टीवी और रेडियो वालों से वसूल करनी शुरू की। 2002 के बाद ये लोग लाइव शोज वालों से भी पैसे मांगने लगे। तब हर शो में प्रति सीट के 6 रुपए रॉयल्टी के जाते थे, जो वक्त के साथ बढ़कर 30 रुपए सीट पर पहुंच गया। अब यह सिर्फ वसूली करते हैं। लाइसेंस देने के लिए इनकी कोई मान्यता बची नहीं है। पर जब से लोग इवेंट्स में धमकाने पहुंच जाते हैं, तो लोग पुलिस का या लीगल मामला मानकर पैसे दे देते हैं।'

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